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मधु वृक्ष / कविता भट्ट

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लताओं के मूल
यही वह क्षण है
जब सभी दुश्चिताएँ दुश्चिन्ताएँ
हो जाती हैं निर्मूल
'''प्रेम में चुम्बन और आलिंगन'''