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सचमुच बहुत देर तक सोए
इधर यहाँ से उधर वहाँ तक
धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक
तुमने सब संकल्प डुबोए ।
जिन को जिनको कल की फ़िक्र नहीं है
उनका आगे ज़िक्र नहीं है,
लोगों के इतिहास बन गए
तुमने सब सम्बोधन खोए ।
'''किनारे ’किनारे के पेड़ पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से'''
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