अलमारी में ढूँढ़ने लगता हूँ कमीज़
और इसी में पूरा हो जाता है एक दिन ।
अच्छा अच्छा हो कि सर्दियाँ आएँ जल्दीजल्दी-से-जल्दीजल्दी
बुहार कर ले जाएँ
इन शहरों और लोगों को
शुरूआत शुरुआत वे यहाँ की हरियाली से कर सकती हैं ।
मैं घुस जाऊँगा बिस्तर बिस्तर में
बिना कपड़े उतारे
पढ़ने लगूँगा किसी दूसरे की क़िताब
पढ़ता जाऊँगा
जब तक साल के बाक़ी दिन
अन्धे के पास से भागे कुत्ते कु्त्ते की तरह
पहुँच नहीं जाते निर्धारित जगह पर ।
हम स्वतन्त्र स्वतन्त्र होते हैं उस क्षण
जब भूल जाते हैं
आततायी के सामने पिता का नाम,