'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जों दैव |अनुवादक=योजना रावत |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=जों दैव
|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
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<poem>
विस्तार को एक फर्नीचर के टुकड़े से भरतीं
रोशनी से भरपूर
जगह की बड़ी-खुली दराज़ें
भरी
बन्द
और ऊपर
और ऊपर
बन्द कमरे तक
जहाँ ढूँढ़ता आकाश अपने तारे
और
चाँद अपना पूर्ण ज्वार ।