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<poem>
ख़ुशी कहाँ ,
कीली पर,
घूमता सवाल ।

रोटी, नचती भागे
गिरते -पड़ते
पीछे - पीछे हम बदहवास
पसीना - पसीना ।
अब आकर हैं जागे
पूँजी औ ' तंत्र के
इरादों ने छीना जब
सुविधा का जीना ।

बाहर आए
हमलों-शक़-सुर्रों के दवाब
देखा तो चिंथे पड़े
घायल , बदहाल ।

ख़ुशी कहाँ
कीली पर
घूमता सवाल ।
</poem>
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