Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शुक्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शुक्ला
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बैठ खिड़की पर अकेली सोचती चिड़िया ।
नीड़ का कोई ठिकाना खोजती चिड़िया ।

पोछकर आँसू, भुलाकर ज़ख़्म काँटों के,
आस के तिनके दुबारा जोड़ती चिड़िया ।

हल नहीं मिलता कोई, जब भी सवालों का,
चिड़चिड़ा कर पंख अपने नोचती चिड़िया ।

उड़ गए साथी कहाँ वो, आसमानों के
खिड़कियाँ यादों की रह-रह खोलती चिड़िया ।

छोड़कर उड़ना, फुदकना, चहचहाना अब
बैठ गुमसुम पंख अपने तोलती चिड़िया ।

तिर रही है पुतलियों में एक दहशत सी,
मौन रहकर भी बहुत - कुछ बोलती चिड़िया ।

धूप, छाया, फूल, ख़ुशबू और मौसम के
संग मीठा एक रिश्ता जोड़ती चिड़िया ।

देखकर यह बेरुख़ी आँगन - मुण्डेरों की,
रुख़ उड़ानों का अचानक मोड़ती चिड़िया ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits