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बैठ खिड़की पर अकेली सोचती चिड़िया / मधु शुक्ला

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बैठ खिड़की पर अकेली सोचती चिड़िया ।
नीड़ का कोई ठिकाना खोजती चिड़िया ।

पोछकर आँसू, भुलाकर ज़ख़्म काँटों के,
आस के तिनके दुबारा जोड़ती चिड़िया ।

हल नहीं मिलता कोई, जब भी सवालों का,
चिड़चिड़ा कर पंख अपने नोचती चिड़िया ।

उड़ गए साथी कहाँ वो, आसमानों के
खिड़कियाँ यादों की रह-रह खोलती चिड़िया ।

छोड़कर उड़ना, फुदकना, चहचहाना अब
बैठ गुमसुम पंख अपने तोलती चिड़िया ।

तिर रही है पुतलियों में एक दहशत सी,
मौन रहकर भी बहुत - कुछ बोलती चिड़िया ।

धूप, छाया, फूल, ख़ुशबू और मौसम के
संग मीठा एक रिश्ता जोड़ती चिड़िया ।

देखकर यह बेरुख़ी आँगन - मुण्डेरों की,
रुख़ उड़ानों का अचानक मोड़ती चिड़िया ।