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दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध।
नदी चीर देती चट्टानों का सीना देती चीर नदी लेकिन,बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध।
पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा,
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध।
जन्मउद्भव, बचपनाबचपन, यौवन इसका देखा इसीलिए,
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध।
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