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07:29, 28 फ़रवरी 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रवि ज़िया
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<poem>
आँसुओं की दास्ताँ लिक्खेगा कौन
मेरी आंखों का बयाँ लिक्खेगा कौन
कर दिया है जब ज़मीं से बर तरफ़
नाम मेरे आसमाँ लिक्खेगा कौन
रफ़्ता-रफ़्ता ले गया आँखों का नूर
कितना ज़ालिम है धुआँ लिक्खेगा कौन
गिर गये जब आँधियों में पेड़ सब
शाख़ पर था आशियाँ लिक्खेगा कौन
सब लिखेंगे रास्ता दुश्वार था
बेख़बर था कारवाँ लिक्खेगा कौन
धूप के लम्बे सफ़र में रेत पर
देखता है सायबाँ लिक्खेगा कौन
कट गई है उम्र ख़ैमों में 'ज़िया'
और ख़ैमों को मकाँ लिक्खेगा कौन
</poem>