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{{KKRachna
|रचनाकार=साईटर सीटोमौरांग
|अनुवादक=श्रीविलास सिंह
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<poem>
चालीस दी उतरते हैं दो ट्रकों से
अनुशासित तरीके से
जेल के दरवाज़े के सामने।

खुलता है विशाल प्रवेश द्वार

सब कुछ होता है ठीक से, आदेश के अनुसार
(वापस जा रहे ट्रकों की आवाज़ में
दब जाती है पंक्तियों की गिनती की ध्वनि)

कमांडर घूरता है कैदियों को एक एक कर
जब वे चल रहे हैं पंजों के बल
पराजितों का अनंतकालीन विन्यास

मैं हूँ उनमें से एक
कदम रखता अपने ही ह्रदय की दहलीज़ पर
अतीत और वर्तमान के प्रवेश द्वार से

अस्तित्व का एक क्षण
मनुष्य बंदी बनाता हुआ मनुष्य को
</poem>
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