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{{KKRachna
|रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा
|संग्रह=
}}

<Poem>
दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी
हाँफकर रोशनी बुझी होगी

चंद झोंके हवा के आएंगे
एक खिड़की जहाँ खुली होगी

माँ रिवाजों की शोख़ बस्ती में
भाई-भाई में कल बँटी होगी

उनके आने की एक आहट से
धूप में चांदनी बिछी होगी

वो हथेली जिसे न छू पाया
उसको मेरी बहुत कमी होगी

</poem>