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{{KKRachna
|रचनाकार=हरभजन सिंह
|अनुवादक=गगन गिल
|संग्रह=जंगल में झील जागती / हरभजन सिंह / गगन गिल
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<poem>
मैं अपने शहर वापस चला जाऊँगा
नदी किनारे खड़ा शहर मेरा
उसने अपने तन-बदन का
अपने हाथों अग्नि-शृंगार किया है

नदी में छलाँग लगाने की सोचता है
मुझे अपने शहर को बीच छलाँग के लपक लेना है
उससे कहना है
अभी बुझ जाने का समय नहीं है

मैं अपने शहर
वापस चला जाऊँगा ।


'''पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल'''
</poem>
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