Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक निराला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विवेक निराला
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लोग जहाँ-तहाँ रुक गए
बन्द हुआ
ईश्वर का सारा रोज़गार।

न नदियों में प्रवाह रह गया
न ज्वालामुखी में दाह
एक कराह भी थम गई ।

प्रदक्षिणा दक्षिण में ठहर गई
और अवाम के लिए
तय बाँये रास्ते पर
बड़े गड्ढे बन चुके हैं ।

एक ही भभकती लालटेन
अपने शीशे के और काले होते जाने पर
सिर धुनती निष्प्रभ पड़ी है ।

क्षण भर के लिए
आसमान से कड़की और चमकी
विद्युत् में रथच्युत योद्धा
लपक कर लापता हुए ।

जीवन अब भी अपठित है
मृत्यु अलिखित
समय अभी स्थगित ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,627
edits