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अन्धेरी निशा में नदी के किनारे / सरयू सिंह 'सुन्दर'
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,
17 जुलाई
कि उजड़ा किसी का चमन रो रहा है,
घनेरी
नशा
निशा
में न जलते सितारे,
बिलखकर किसी की चिता जल रही है ।
अनिल जनविजय
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