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18:14, 27 जुलाई 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेश अरोड़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
तुम तब भी नहीं बुलाती थी मुझे
लेकिन मैं आता रहता था
बीच में गुजरे थोड़े से बरस
और मैं नहीं आया
अचानक
तुम मिली थी
ऑडिटोरियम से निकलते हुए
तुमने कहा
तुम आए नहीं
मैंने सुना तुम बुला रही हो
समय रुक गया था
मैंने तुम्हारी तरफ़ वैसे ही देखा
जैसे मैं देखता था
मुझे लगा तुम भी मेरी तरफ़
देख रही हो।
समय रुका हुआ था
इस रुके समय को
मैंने फ्रेम कर
अपने कमरे की दीवार पर
टांग लिया है
और अब
जब भी इस रुके समय को देखता हूँ
लगता है
मैं कविता जी रहा हूँ।
</poem>