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कमरे की दीवार पर टंगा फ्रेम / राजेश अरोड़ा
Kavita Kosh से
तुम तब भी नहीं बुलाती थी मुझे
लेकिन मैं आता रहता था
बीच में गुजरे थोड़े से बरस
और मैं नहीं आया
अचानक
तुम मिली थी
ऑडिटोरियम से निकलते हुए
तुमने कहा
तुम आए नहीं
मैंने सुना तुम बुला रही हो
समय रुक गया था
मैंने तुम्हारी तरफ़ वैसे ही देखा
जैसे मैं देखता था
मुझे लगा तुम भी मेरी तरफ़
देख रही हो।
समय रुका हुआ था
इस रुके समय को
मैंने फ्रेम कर
अपने कमरे की दीवार पर
टांग लिया है
और अब
जब भी इस रुके समय को देखता हूँ
लगता है
मैं कविता जी रहा हूँ।