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|रचनाकार=सुरंगमा यादव
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जो तुम आ जाते जीवन में
सौरभ भर जाता इस मन में
मन का विषाद सब धुल जाता
मन राग मधुर रह-रह गाता
भटक रहीं जो अभिलाषाएँ
तुमको पाकर वे मुसकाएँ
मृदु सपनों में खोते नयना
तुम बिन जो व्याकुल दिन-रैना
चिर संचित नैराश्य हमारा
धवल हास बन लगता प्यारा
थकित हुआ मन पंछी अब तो
नीड़ प्यार का दे इसको
</poem>