भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो तुम आ जाते / सुरंगमा यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो तुम आ जाते जीवन में
सौरभ भर जाता इस मन में
 मन का विषाद सब धुल जाता
 मन राग मधुर रह-रह गाता
भटक रहीं जो अभिलाषाएँ
 तुमको पाकर वे मुसकाएँ
मृदु सपनों में खोते नयना
 तुम बिन जो व्याकुल दिन-रैना
चिर संचित नैराश्य हमारा
धवल हास बन लगता प्यारा
थकित हुआ मन पंछी अब तो
नीड़ प्यार का दे इसको