Changes

सम्राट अशोक / विश्राम राठोड़

1,720 bytes added, 14:55, 19 सितम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्राम राठोड़ |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विश्राम राठोड़
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह कविता सम्राट् अशोक के अन्तिम युद्ध
कलिंग युद्ध में मनोदशा का वर्णन इस प्रकार है

वो धीरोदात्त आज, अधीर हुआ रण-कौशल के मैदान में
वो जीत के भी हार गया
लोमहर्षक के विषाद में

वो महत्त्वाकांक्षी, मुकदर्शक बन गया
मनस्ताप के खेल में
वो मनो वेदना, मुक्त कंठ हो गई
मुमुर्षा के फेर में

वो रक्तरंजित तलवारें भी
मानो ऐसे लगती थी
पानी में ही मीन तड़पति
और बड़वानल ही दिखती थी

तर-तरकश, तीर तुणिर हुआ
आज पर्वत, फिर क्षीण हुआ
यह ह्रदय विदारक घटना है
अश्रु में बहती, नदियाँ और झरना है

मन, बुद्धि और चित लीन हुआ
चिंतन और भक्ति में तल्लीन हुआ
युग प्रवर्तक बनकर, युयुत्सु को त्याग दिया
युगद्रष्टा बनकर, युप को गाढ़ दिया
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,496
edits