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15:29, 19 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विश्राम राठोड़
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हमें हमारी तस्वीरों में
ऐसी कहानियाँ छा ने
लगी है
छा जाता है कोहरा
मिटाने के लिए
धूप आने लगी है
धूं जैसा जलता
अगर पडो़सी का घर
तो चुप
अपना ही घर जलता
तो राख
नज़र आने लगी
</poem>