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22:36, 9 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नजवान दरविश
|अनुवादक=मंगलेश डबराल
|संग्रह=
}}
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<poem>
हरेक कवि के सामने है उसके वतन का नाम
मेरे नाम के पीछे यरूशलम के अलावा कुछ नहीं है
कितना डरावना है तुम्हारा नाम, मेरे छोटे से वतन
नाम के अलावा
तुम्हारा कुछ भी नहीं बचा मेरी खातिर
मैं उसी में सोता हूँ, उसी में जागता हूँ
वह एक नाव का नाम है
जिसके पहुँचने या लौटने की
कोई उम्मीद नहीं ।
वह न पहुँचती है और न लौटती है
वह न पहुँचती है और न डूबती है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>