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गर तुम्हें साथ मेरा गवारा नहीं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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5 फ़रवरी
हसरत-ए-दीद दिल की, रही दिल में ही
रुख से
अपनी
ज़ुल्फ़ों को तू ने
हटाया
सवारा
नहीं
बू-ए-गुल की तरह है मिरी ज़िन्दगी
आज है कौन दुनिया में ऐसा 'रक़ीब'
गर्दिशे वक़्त ने जिसको मारा नहीं
</poem>
SATISH SHUKLA
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