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जब प्यार तेरा मुझको मयस्सर न हुआ था
ग़म कहते हैं जिसको वो मुकद्दर न हुआ था
आबाद था, बरबाद मेरा घर न हुआ था
भूलूंगा मैं किस तरहा भूलूं भी तो कैसे भला मैं पहली मुलाक़ात
तब आपका दिल फूल था पत्थर न हुआ था
कहते हैं 'रक़ीब' अब है मुक़द्दर का सिकन्दर
इस तरहा ये ज़र्रा कभी अख्तर न हुआ था
 
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