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|रचनाकार=मधु 'मधुमन'
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|संग्रह=धनक बाक़ी है / मधु 'मधुमन'
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<poem>
ज़िंदगी तेरे तग़ाफ़ुल ने बड़ा तंग किया
ख़ार तो ख़ार हमें गुल ने बड़ा तंग किया

हमने जोड़ा तो उधर तोड़ दिया फिर उसने
उम्र भर रब्त-ए-तहम्मुल ने बड़ा तंग किया

जाने किस सम्त मुझे खींच लिए जाता है
हाय इस दिल के तख़य्युल ने बड़ा तंग किया

एक हारी हुई सूरत ही नज़र आती है
आइने तुझसे तक़ाबुल ने बड़ा तंग किया

दिल जो उलझा तो सुलझने की न सूरत निकली
हमको तेरे ख़म-ए-काकुल ने बड़ा तंग किया

काफ़िए मिल गए तो बह्र में ये जाँ अटकी
ऐ ग़ज़ल तेरे तग़ज्ज़ुल ने बड़ा तंग किया

एक लम्हा भी नहीं चैन से कटता ‘मधुमन’
तेरी यादों के तसलसुल ने बड़ा तंग किया बड़ा तंग किया
</poem>
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