1,001 bytes added,
26 जुलाई {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक अंजुम
|अनुवादक=
|संग्रह=अशोक अंजुम की मुक्तछंद कविताएँ / अशोक अंजुम
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हारी
गर्मी के मौसम में गर्म
और
सर्दी के मौसम में सर्द
हथेलियों का
मेरे शरीर पर रेंगना
जगा देता है मन में जुगुप्सा
पैदा होती है खीज।
काश, ऐसा होता कभी
तुम्हारी ये हथेलियाँ
गर्मी मंे ठण्डी
और सर्दी में गर्म होतीं!
काश!
काश ऐसा होता कभी!
लेकिन सबके नसीब में
सच्चा प्यार कहाँ होता है!
</poem>