गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की / फ़राज़
33 bytes added
,
05:03, 1 दिसम्बर 2008
वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में <br>
या तो टूट कर रोया या
फ़िर
ग़ज़लसराई की <br><br>
तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में <br>
आज
उनसे
उन हसीनों से
मजबूरन ताज़ा आशनाई की <br><br>
हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से <br>
Ranjanjain
8
edits