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::अति धीर ज्ञानी प्रेय श्रेय के रूप का चिंतन करें,<br>::दोनों का अन्तर समझ कर ही श्रेय का साधन करें।<br>::मंद बुद्धि मनुष्य भौतिक, योगक्षेम में लींन हैं,<br>::तत्व ज्ञानी नीर क्षीर विवेक प्रभु तल्लीन हैं॥ [ २ ]<br><br>
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::विख्यात दो साधन प्रमुख, विद्या - अविद्या नाम से,<br>::एक भोगों से सलग, और एक प्रेरित ज्ञान से।<br>::नचिकेता प्रिय विद्या का में, अभिलाषी तुमको मानता,<br>::अविचल तितिक्षामय विवेकी, आत्मज्ञान प्रधानता॥ [ ४ ]<br><br>
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::भौतिक प्रमादी मूढ़ जो, धन मोह में मदमत्त हैं,<br>::परलोक की चिंता नहीं, अदृश्य उनको सत्य हैं।<br>::भौतिक क्षणिक सुख मान शाश्वत, भ्रमित हो हँसते रहे,<br>::पुनरपि जनम और मरण के, दुष्चक्र में फँसते रहे॥ [ ६ ]<br><br>
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