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|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}
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|सारणी=ऐतरेयोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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<span class="mantra_translation">
सृष्टा सृजित सब देवता, जब जग जलधि में आ गए,<br>
उन्हें भूख प्यास से युक्त ब्रह्म ने, जब किया अकुला गए.<br>
तब देवताओं ने कहा, मम हेतु प्रभु स्थान दो,<br>
स्थित हों जिस पर, अन्न भक्षण कर सकें, वह विधान दो॥ [ १ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
गौ गात लाये ब्रह्म तब, उन देवताओं के लिए,<br>
मम हेतु नहीं पर्याप्त भगवन, दूसरा कुछ दीजिये<br>
परब्रह्म ने तब गात अश्व का, देवताओं हित रचा,<br>
यह भी नहीं पर्याप्त प्रभुवर और न हमको रुचा॥ [ २ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
तब देवताओं को, ब्रह्म ने, मानव शरीर की सृष्टि की,<br>
यह सुकृति देवों को रूचि, प्रभु ने कृपा की दृष्टि की.<br>
तुम अपने योग्य के आश्रयों में, देवताओं प्रविष्ट हो,<br>
मानव शरीर ही श्रेष्ठ रचना, सकल रचना विशिट हो॥ [ ३ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
बन अग्नि मुख में वाक्, वायु प्राण बन कर नासिका,<br>
रवि नेत्र बन और दिशा श्रोतम, रूप औषधि रोम का.<br>
बन म्रत्यु देव अपान वायु, नाभि में स्थित हुए,<br>
और चंद्र मन बन हृदय में, जल वीर्य बन स्थित हुए॥ [ ४ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
भूख और पिपासा ने ब्रह्म से, की याचना कुछ दीजिये,<br>
तब ब्रह्म ने देवांश में से ही, अंश दोनों को दिए.<br>
अथ देवताओं द्वारा हवि जो, इन्द्रिओं से ग्रहण हो,<br>
वह ही परोक्ष में भूख प्यास का अंश देवों से ग्रहण हो॥ [ ५ ]<br><br>
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