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धड़कनों में कहीं / शलभ श्रीराम सिंह
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15:20, 5 दिसम्बर 2008
छू रहे हैं पीठ-गर्दन-माथ
खाँसियों में फेफड़े का दर्द ढलता है!
:
:::दिन निकलता है!
खिड़कियों से फ़र्श पर कफ़ गिरी
टूटने को नसें खिंचती हैं
धड़कनों में कहीं पर फ़ौलाद गलता है!
:
:::दिन निकलता है!
</poem>
गंगाराम
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