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नग़्मगी नग़्मासरा है और नग़्मों में गुहार / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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03:24, 14 दिसम्बर 2008
इन भटकते बादलों का इस तरह निकला ग़ुबार
नद्दियों, नालों की सुन
फ़िर
, फिर
आज है सरगम बजी
रुह का सहरा भिगो कर जाएगी बरखा बहार
द्विजेन्द्र द्विज
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