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आज फिर मुझको खिड़की से/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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01:34, 29 दिसम्बर 2008
आज फिर मुझको खिड़की से
दिख रहा है चाँद आधा-आधा
जिस तरह से मैं जी रहा हूँ
वो भी कहीं जी रहा है आधा-आधा
</poem>
विनय प्रजापति
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