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'''लेखन वर्ष: २००३ वक़्त का पहना उतार आयेआएकुछ लम्हे मरके गुज़ार आयेआए
ख़ाबों में सही अपना तो माना
दिल को मेरे अपना तो जाना
खट्टे-मीठे रिश्ते चख लिये लिए हैंकुछ सच्चे पलकों पे रख लिये लिए हैं
ख़ाहिशों का बवण्डर है दिल
दिल को उसके दर पे छोड़ आयेआए
तेरी रज़ा क्या मेरी रज़ा क्या
ख़ला-ख़ला सजायी एक महफ़िल
महफ़िलों से उठके चले आयेआए वक़्त का पहना उतार आएकुछ लम्हे मर के गुज़ार आए
वक़्त का पहना उतार आयेकुछ लम्हे मरके गुज़ार आये'''रचनाकाल : 2003
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