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05:40, 14 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=घर एक यात्रा / तुलसी रमण
}}
<poem>
उर्वर भूमि को चूसते
खजूर के ये पेड़
बढ़ते ही जा रहे
आसमान की ओर
अठखेलियां करते
इनके समूहों को देख
अब कोई कबीर नहीं
जुटा रहा दोहा गाने का साहस
जमीन की हरियाली की गवाह
सदाबहार दूब
खजूरों से घिरे आकाश
नीचुड़ी उर्वरता में धरती
पर लगातार पड़ती जा रही है
पीली
दूब का पीला पड़ना
पीलिया है धरती का
पीलिया ग्रसित धरती एक दिन
बावरी हो नाचेगी
और ग्रस लेगी
खजूर के
इन पेड़ों को भी
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