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पीलिया / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
उर्वर भूमि को चूसते
खजूर के ये पेड़
बढ़ते ही जा रहे
आसमान की ओर
अठखेलियां करते
इनके समूहों को देख
अब कोई कबीर नहीं
जुटा रहा दोहा गाने का साहस
जमीन की हरियाली की गवाह
सदाबहार दूब
खजूरों से घिरे आकाश
नीचुड़ी उर्वरता में धरती
पर लगातार पड़ती जा रही है
पीली
दूब का पीला पड़ना
पीलिया है धरती का
पीलिया ग्रसित धरती एक दिन
बावरी हो नाचेगी
और ग्रस लेगी
खजूर के
इन पेड़ों को भी