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{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
<poem>
ओ मेरे प्रात के सपने !
मुझे न और छलो ।

तुम भी सपने संग न लिपटो,
नकटे निकल चलो।
ओ मेरे प्रात के सपने....
इस ठगनी की चंचल चितवन,
हमका गई बिलो।
ओ मेरे प्रात के सपने...

सपने की हानि क्या हानि,
काहे लाभ मिलो?
ओ मेरे प्रात के सपने......

वह जिसने हमको बाँथा था,
कहीं नहीं हैं वो ।
ओ मेरे प्रात के सपने
</poem>
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