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17:34, 18 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
<poem>
ओ मेरे प्रात के सपने !
मुझे न और छलो ।
तुम भी सपने संग न लिपटो,
नकटे निकल चलो।
ओ मेरे प्रात के सपने....
इस ठगनी की चंचल चितवन,
हमका गई बिलो।
ओ मेरे प्रात के सपने...
सपने की हानि क्या हानि,
काहे लाभ मिलो?
ओ मेरे प्रात के सपने......
वह जिसने हमको बाँथा था,
कहीं नहीं हैं वो ।
ओ मेरे प्रात के सपने
</poem>