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|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरीमोमिन
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दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा
ग़ज़ल के '''कठिन शब्दों के अर्थ : क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ==: प्रीतम के प्रेम के क़ाबिल , वलवला--: जोश ख़रोश, तुग़याँ--: ज़ोर- चढ़ाओ, रफ़ू--: सिलाई, ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ-- : पलकों के हिलने-जुलने का ध्यान , फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ--: दवा-दारू की चिंता,लाफ़--: बकवास-, शेख़ी- , ढोंग इत्यादि</poem>