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{{KKRachna
|रचनाकार=मोमिन
}}ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से <br>कहूँ कुछ और कुछ निकले ज़ुबाँ से <br><br>[category: ग़ज़ल]
बुरा है इश्क़ का अंजाम यारब <brpoem>बचना फ़ितना-ए-आखिर ज़माँ ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ सेकहूँ कुछ और कुछ निकले ज़ुबाँ से<br><br>
मेरा बचना बुरा है आप ने क्यों<br>इश्क़ का अंजाम यारबअयादत की लबबचना फ़ितना-ए-मोजज़ बयाँ आखिर ज़माँ से <br><br>
*मेरा बचना बुरा है आप ने क्योंअयादत की लब-ए-मोजज़ = बीमार का हाल जानना<br>बयाँ से
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब <br>तुझे ए ज़िन्दगी लाऊँ कहाँ से <br><br>
न बोलूँगा न बोलूँगा कि मैं हूँ <br>ज़्यादा बद गुमाँ उस बदगुमाँ से <br><br>
न बिजली जलवा फ़रमा है न सय्याद <br>निकल कर क्या करें हम आशयाँ से <br><br>
बुरा अंजाम है आग़ाज़-ए-बद का<br>जफ़ा की हो गई खू इमतिहाँ से <br><br>
*आग़ाज़-ए-बद = बुरा <br>*खू = आदत  खुदा की बेनियाज़ी हाय 'मोमिन'<br>
हम ईमाँ लाए थे नाज़-ए-बुताँ से
*'''शब्दार्थ: लब-ए-मोजज़: बीमार का हाल जानना, आग़ाज़-ए-बद: बुरा, खू: आदत, बेनियाज़ी = : लापरवाही *, नाज़-ए-बुताँ = : हसीनों के नख़रे </poem>