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20:45, 22 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
}}
<poem>
::1
मौन आहों में बुझी तलवार
तैरती है बादलों के पार।
चूमकर ऊषाभ आशा अधर
गले लगते हैं किसी के प्राण।
::– गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न :
::छोड़ दो न ज्योति का परिधान!
::2
यह कसकता, यह उभरता द्वंद्व
तुम्हें पाने मधुरतम उर में,
तोड़ देने धैर्य-वलयित हृदय
::उठा।
परम अंतर्मिलन के उपरांत
प्राप्त कर आनंद मन एकांत
खिला मृदु मधु शांत।
(1945)
</poem>