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मौन आहों में बुझी तलवार / शमशेर बहादुर सिंह

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1
मौन आहों में बुझी तलवार
तैरती है बादलों के पार।
चूमकर ऊषाभ आशा अधर
गले लगते हैं किसी के प्राण।
– गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न :
छोड़ दो न ज्योति का परिधान!

2
यह कसकता, यह उभरता द्वंद्व
तुम्हें पाने मधुरतम उर में,
तोड़ देने धैर्य-वलयित हृदय
उठा।

परम अंतर्मिलन के उपरांत
प्राप्त कर आनंद मन एकांत
खिला मृदु मधु शांत।

(1945)