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प्रथम प्रकरण / श्लोक 11-20 / मृदुल कीर्ति
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अष्टावक्र उवाचः
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जो मुक्त माने ,मुक्त स्व को, बद्ध माने बद्ध है,
जैसी मति वैसी गति, किवंदंती ऐसी प्रसिद्ध है.---११
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