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18:26, 5 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोमिन
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गये नाचार2 जी से हम
हँसते जो देखते हैं किसी को किसी से हम
मुँह देख-देख रोते हैं किस बेकसी से हम
उस कू में जा मरेंगे मदद ऐ हुजूमे-शौक़2
आज और ज़ोर करते हैं बेताक़ती से हम
साहब ने इस ग़ुलाम को आज़ाद कर दिया
लो बन्दगी कि छूट गए बन्दगी3 से हम
बे-रोये मिस्ले-अब्र4 न निकला ग़ुबारे-दिल5
कहते थे उनको बर्क़े-तबस्सुम6 हँसी से हम
मुँह देखने से पहले भी किस दिन वह साफ़ थे
बे-वजह क्यों ग़ुबार7 रखें आरसी8 से हम
है छेड़ इख़्तलात9 भी ग़ैरों के सामने
हँसने के बदले रोयें न क्यों गुदगुदी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेग़ाना-अश्ना10
क्यों अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
इन नातवानियों11 पे भी थे ख़ारे-राहे-ग़ैर12
क्योंकर निकाले जाते न उसकी गली से हम
'''शब्दार्थ:
1. विवश 2. बेहिसाब इच्छाएँ 3. बन्धन 4. बादल जैसा 5. दिल की कसक 6. बिजली-सी मुस्कान 7. मैल 8. एक प्रकार की अंगूठी 9. प्यार 10. अजनबी दोस्त 11. दुर्बलताएँ 12. ग़ैरों की रहा के काँटे
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