836 bytes added,
13:47, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
उसे घर से नहीं कोई उम्मीद
न दुनिया से
फिर भी
उम्मीद है
घर छोड़ आएगा उसे
दहलीज़ तक
और दुनिया
चौराहे तक
उसके आगे
अकेला होगा वह
उस पड़ाव तक जहाँ से
न घर दिखाई देता है
न दुनिया
बस, उसके पास होगा
घर और दुनिया से
बचाकर रखा थोड़ा-सा बारूद
जो फूटता रहेगा
सदियों तक।
</poem>