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बारूद / केशव

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उसे घर से नहीं कोई उम्मीद
न दुनिया से
फिर भी
उम्मीद है
घर छोड़ आएगा उसे
दहलीज़ तक
और दुनिया
चौराहे तक
उसके आगे
अकेला होगा वह
उस पड़ाव तक जहाँ से
न घर दिखाई देता है
न दुनिया
बस, उसके पास होगा
घर और दुनिया से
बचाकर रखा थोड़ा-सा बारूद
जो फूटता रहेगा
सदियों तक।