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13:59, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
वह भूखा ज़रूर है
शायद सृष्टि के पल से
पर निर्लज्ज नहीं
एक-एक कौर में बेशक
कैद है उसका सपना
पर वह
सपने का मोहताज़ नहीं
वह अपनी
भूख़ के साथ रहता है
हर पल
पर उसका
एक भी पल भूखा नहीं
दुनिया के लिए
भूख के कई नाम
पर उसके लिए
सिर्फ पेट की आग
इस आग में तपकर
निकलता वह
भूख़ के लिए जीना छोड़
भूख से लगातार लेता होड़ ।
</poem>