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14:02, 8 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सौदा
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[[category: ग़ज़ल]]
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करती है मिरे दिल में तिरी जल्वागरी रंग
इस शीशे में हर आन दिखाती है परी रंग
किस रंग में देखा न तिरे रंग का जल्वा
सब रंग में तू, पे1 तिरा सबसे बरी2 रंग
ऐ शीशागराँ, दिल कोई टूटा हो, बना दे
पैदा करे फिर और ही कुछ शीशागरी रंग
है ख़ाकबसर आज, ख़ुदा जाने चमन का
देख आयी है क्या जाके नसीमे-सेहरी3 रंग
किस गुल में ये जल्वा है जो अब कुंजे-क़फ़स में4
दिखलाती है मेरी मुझे बे-बालो-परी5 रंग
कर जाम-ए-उरयानी6 को ख़ाकस्तरी7 'सौदा'
है अज़्मे-सफ़र8 याँ9 से तो है ये सफ़री रंग
'''शब्दार्थ:
1. लेकिन 2. श्रेष्ठ 3. सुबह की ठंडी हवा 4. पिंजरे के कोने में 5. पंखहीनता 6. नग्नता रूपी वस्त्र 7. मिट्टी के रंग का 8. यात्रा का संकल्प 9. यहाँ
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