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16:53, 13 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=
}}
<Poem>
डरता है बच्चा
अँधेरे से
डरता-डरता वह सीखता है -
नहीं डरना !
एक दिन
आता है ऐसा
भरी दोपहरी
बच्चा पहचान लेता है
उजास में अँधेरा ।
बच्चा
जब पहचान लेता है- अँधेरा
बच्चा बच्चा नहीं रहता
दबने लगता है
भार से
करने लगता है युद्ध
अँधेरे की मार से ।
'''अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा'''
</poem>