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अँधेरा और बच्चा / नीरज दइया

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<Poem>
डरता है बच्चा
अँधेरे से
डरता-डरता वह सीखता है -
नहीं डरना !

एक दिन
आता है ऐसा
भरी दोपहरी
बच्चा पहचान लेता है
उजास में अँधेरा ।

बच्चा
जब पहचान लेता है- अँधेरा
बच्चा बच्चा नहीं रहता
दबने लगता है
भार से
करने लगता है युद्ध
अँधेरे की मार से ।

'''अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा'''
</poem>