भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अँधेरा और बच्चा / नीरज दइया
Kavita Kosh से
डरता है बच्चा
अँधेरे से
डरता-डरता वह सीखता है -
नहीं डरना !
एक दिन
आता है ऐसा
भरी दोपहरी
बच्चा पहचान लेता है
उजास में अँधेरा ।
बच्चा
जब पहचान लेता है- अँधेरा
बच्चा बच्चा नहीं रहता
दबने लगता है
भार से
करने लगता है युद्ध
अँधेरे की मार से ।
अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा