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15:38, 14 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अमृता प्रीतम
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
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|पीछे=नौ सपने / भाग 3 / अमृता प्रीतम
|आगे=नौ सपने / भाग 4 / अमृता प्रीतम
|सारणी=नौ सपने / अमृता प्रीतम
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<poem>
मेरे और मेरी कोख तक –
यह सपनों का फ़ासला।
मेरा जिया हुलसा और हिया डरा,
बैसाख में कटने वाला
यह कैसा कनक था
छाज में फटकने को डाला
तो छाज तारों से भर गया...
<pre>... ... ...</pre>
</poem>