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20:02, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
|संग्रह=
}}
<poem>
ऎसा क्यों होता है-
कि होने के शोर में
कुछ भी नहीं हो पात
और
फिर भी कवि को यह भ्रम
होता रहता है
कि वह
कविता लिख रहा है
और इसलिए
वह
कवि बना हुआ है
</poem>