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01:35, 16 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = अशोक वाजपेयी
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सब-कुछ बीत जाने के बाद
बचा रहेगा प्रेम
केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों-सा,
मृत्यु के बाद द्रव्य-स्मरण-सा,
अश्वारोहियों से रौंदे जाने के बाद
हरियाली ओढ़े दुबकी पड़ी धरती-सा,
गरमियों में सूख गए झरने की चट्टानों के बीच
:::जड़ों में धँसी नमी-सा
:::बचा रहेगा
:::अंत में भी
:::प्रेम!
(1990)
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